GujaratSurat

गृहस्थ भी करे समतारस का आसेवन : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

जीवन की हर परिस्थिति में समताभाव रखने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

सूरत (योगेश मिश्रा) भारत का पश्चिम भाग में स्थित भारत का सबसे समृद्ध राज्य गुजरात और गुजरात राज्य का सबसे समृद्ध तथा विश्व में हीरे और कपड़े के व्यवसाय के लिए सुविख्यात सूरत शहर वर्तमान में धर्म और अध्यात्म नगरी के रूपी में भी ख्यापित हो रहा है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी इस नगरी में अपना भव्य चतुर्मास कर रहे हैं। इस अवसर का लाभ प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और हजारों श्रद्धालु संयम विहार में रहकर इस अवसर का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में विविध आयोजनों, सम्मेलनों व अधिवेशनों का दौर भी अनवरत जारी है। शुक्रवार को भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में एक नए प्रकल्प सेवा साधक श्रेणी का प्रथम त्रिदिवसीय शिविर का शुभारम्भ हुआ तो दूसरी ओर अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का वार्षिक अधिवेशन का क्रम भी प्रारम्भ हुआ।

शुक्रवार को महावीर समवसरण में समुपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में लाभ और अलाभ की बात होती है। साधु को भी लाभ की स्थिति में ज्यादा प्रसन्नता तथा अलाभ में बहुत ज्यादा शोक नहीं करना चाहिए। साधु को मद और शोक दोनों से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु को दोनों ही परिस्थितियों में समता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। हमारे धर्मसंघ में दो बार अर्हत वंदना होती है, जिसके पाठ में लाभ और अलाभ में भी समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निंदा-प्रशंसा, मान और अपमान इन द्वंदात्मक स्थितियों में सम रहने की प्रेरणा दी गई है। साधु को समतामूर्ति, क्षमामूर्ति, त्यागमूर्ति, अहिंसामूर्ति, दयामूर्ति, यथार्थमूर्ति, महाव्रतमूर्ति होना चाहिए।

गृहस्थ को भी अपने जीवन में समतारस का आसेवन करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में व्यापार, धंधा आदि कार्य करते हैं। किसी वर्ष बहुत अच्छी इनकम हो जाए, कभी घाटा भी लग जाए, कभी सामान्य-सी स्थिति भी हो जाए तो ऐसी परिस्थितियों में गृहस्थ अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में कभी प्रिय का वियोग हो जाए तो भी मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास होना चाहिए। मन को दोनों ही स्थितियों में समता भाव में रखने का प्रयास होना चाहिए। ज्यादा राग और ज्यादा द्वेष भी विषमता की स्थिति ही होती है। आदमी को दोनों स्थितियों में सम भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए आदमी को लाभ होने पर मद न करे और शोक मिल जाने पर ज्यादा दुःखी नहीं बनने का प्रयास करना चाहिए।

आज से आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में त्रिदिवसीय सेवा साधक श्रेणी के शिविर का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया तथा इस श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक श्री किशनलाल डागलिया ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में सेवा साधक श्रेणी की परियोजना सामने आई है। समाज में अनेक गतिविधियां हैं। जीवन में आदमी साधना करे। मानव जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिक अच्छी साधना भी चले और धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का भी प्रयास हो। इस शिविर से संभागियों को अच्छी जानकारी, अच्छा प्रशिक्षण व अच्छा लाभ प्राप्त हो। विकास परिषद के सदस्य श्री बनेचंद मालू ने अपनी भावाभिव्यक्ति थी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button